हसननसरुल्लाह की मौत के बारे में कोई आधिकारिक या विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध नहीं है। हसन नसरुल्लाह, जो हिज़बुल्लाह के महासचिव हैं, अब भी जीवित हैं और सक्रिय रूप से संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं। कई बार ऐसी अफवाहें फैली हैं कि उन्हें मार दिया गया है या उनकी मृत्यु हो चुकी है, लेकिन ये खबरें गलत साबित हुई हैं। वे अपने संगठन के प्रमुख नेता हैं और मध्य पूर्व में एक प्रभावशाली और विवादास्पद शख्सियत माने जाते हैं।
हसन नसरुल्लाह का नाम पहली बार प्रमुखता से तब सामने आया जब उन्होंने 1992 में हिज़बुल्लाह की कमान संभाली। इसके बाद से उन्होंने हिज़बुल्लाह को एक मजबूत मिलिटेंट और राजनीतिक ताकत में बदल दिया, जिसने लेबनान और पूरे मध्य पूर्व में अपनी पकड़ को मजबूत किया। नसरुल्लाह की सार्वजनिक छवि एक कट्टरपंथी और दृढ़ नेता की रही है, और उनके खिलाफ कई बार इजरायली खुफिया एजेंसियों ने हत्या की कोशिशें की हैं, लेकिन वह अब भी सक्रिय रूप से अपने संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं।
हसन नसरुल्लाह का परिचय
हसन नसरुल्लाह का जन्म 31 अगस्त 1960 को लेबनान के बौरज हमूद में हुआ था। वे एक शिया मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जो दक्षिणी लेबनान से हैं। बचपन से ही उनका झुकाव धार्मिक शिक्षा की ओर था और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लेबनान में प्राप्त की। इसके बाद वे इराक के नजफ में शिया धार्मिक शिक्षा लेने चले गए, जहां उन्होंने शिया इस्लामी सिद्धांतों का अध्ययन किया।
नसरुल्लाह ने बहुत ही कम उम्र में शिया इस्लामी आंदोलनों में भाग लेना शुरू किया। 1978 में, उन्हें इराक से वापस लेबनान भेज दिया गया, जहां वे अमल आंदोलन में शामिल हो गए, जो शिया समुदाय का प्रतिनिधित्व करता था। हालांकि, कुछ समय बाद नसरुल्लाह ने अमल से अलग होकर हिज़बुल्लाह नामक संगठन की ओर रुख किया, जो उस समय एक नया उदय ले रहा था और जिसे ईरान से समर्थन प्राप्त था। हिज़बुल्लाह का मुख्य उद्देश्य इजरायल के खिलाफ संघर्ष और लेबनान में शिया समुदाय के अधिकारों की रक्षा करना था।
हिज़बुल्लाह का उदय
1980 के दशक में हिज़बुल्लाह का गठन हुआ और इस संगठन ने बहुत ही कम समय में अपनी ताकत को बढ़ाया। इसका मुख्य मकसद इजरायल के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष था, जो उस समय लेबनान के दक्षिणी हिस्से पर कब्जा किए हुए था। हिज़बुल्लाह के उभरने के पीछे ईरान की क्रांतिकारी गार्डों की भूमिका अहम थी, जो इसे सैन्य और वित्तीय सहायता प्रदान कर रहे थे।
1992 में, जब हिज़बुल्लाह के तत्कालीन नेता अब्बास अल-मुसावी की हत्या इजरायली हवाई हमले में हुई, तब नसरुल्लाह को हिज़बुल्लाह का महासचिव नियुक्त किया गया। उनकी उम्र उस समय मात्र 32 वर्ष थी, लेकिन उनके नेतृत्व में हिज़बुल्लाह ने अपनी रणनीति को और अधिक आक्रामक और प्रभावी बनाया।
नसरुल्लाह की रणनीति और नेतृत्व
हसन नसरुल्लाह की नेतृत्व शैली ने हिज़बुल्लाह को एक छोटे से गुरिल्ला संगठन से एक बड़ी राजनीतिक और सैन्य ताकत में बदल दिया। उन्होंने संगठन की ताकत को बढ़ाने के लिए राजनीतिक, सामाजिक, और सैन्य रणनीतियों का इस्तेमाल किया। नसरुल्लाह ने हिज़बुल्लाह को सिर्फ एक सैन्य संगठन नहीं रहने दिया, बल्कि उसे लेबनान की राजनीतिक व्यवस्था में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभारा।
नसरुल्लाह की सबसे बड़ी जीत 2000 में मानी जाती है, जब इजरायली सेना को दक्षिणी लेबनान से हटना पड़ा। इस जीत ने नसरुल्लाह को न केवल लेबनान में, बल्कि पूरे अरब दुनिया में एक हीरो बना दिया। उन्होंने इस जीत को “दिव्य विजय” के रूप में प्रचारित किया और इसके बाद हिज़बुल्लाह की लोकप्रियता में जबरदस्त इज़ाफा हुआ।
2006 का लेबनान-इजरायल युद्ध
2006 में नसरुल्लाह ने एक और महत्वपूर्ण मोर्चे पर नेतृत्व किया, जब हिज़बुल्लाह और इजरायल के बीच 34 दिन का युद्ध हुआ। यह युद्ध तब शुरू हुआ जब हिज़बुल्लाह ने इजरायली सैनिकों का अपहरण कर लिया और इसके जवाब में इजरायल ने लेबनान पर बमबारी शुरू की। इस युद्ध के दौरान हिज़बुल्लाह ने हजारों रॉकेट इजरायल की ओर दागे और इजरायली शहरों को निशाना बनाया। इस युद्ध ने नसरुल्लाह की सैन्य रणनीति और हिज़बुल्लाह की ताकत को और अधिक उजागर किया।
हालांकि, इस युद्ध में लेबनान को भारी नुकसान हुआ, लेकिन नसरुल्लाह और उनके समर्थकों ने इसे हिज़बुल्लाह की जीत के रूप में देखा, क्योंकि इजरायल को अपनी सेना वापस लेनी पड़ी। युद्ध के बाद नसरुल्लाह ने कहा, “अगर मुझे पहले से पता होता कि यह युद्ध इस तरह से होगा, तो मैं इसे कभी शुरू नहीं करता।” इस बयान ने नसरुल्लाह की नेतृत्व शैली को और अधिक विवादित बना दिया, लेकिन इससे उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई।
नसरुल्लाह की सुरक्षा और इजरायली प्रयास
हसन नसरुल्लाह का नेतृत्व हमेशा से ही इजरायली खुफिया एजेंसियों के निशाने पर रहा है। इजरायल ने कई बार उन्हें मारने की कोशिश की है, खासकर 2006 के युद्ध के बाद। नसरुल्लाह इन प्रयासों के चलते छिपकर रहने लगे और अब वे ज्यादातर वीडियो लिंक के जरिए अपने समर्थकों को संबोधित करते हैं। उनकी सुरक्षा के लिए कड़े इंतजाम किए गए हैं और उनकी हर सार्वजनिक उपस्थिति बेहद सावधानी से की जाती है।
हिज़बुल्लाह की ईरान और सीरिया से निकटता
हिज़बुल्लाह और नसरुल्लाह की सबसे बड़ी ताकत उनके ईरान से निकट संबंधों में है। ईरान हिज़बुल्लाह को सैन्य और वित्तीय सहायता प्रदान करता है और नसरुल्लाह इसे “वैचारिक साझेदारी” के रूप में देखते हैं। नसरुल्लाह ने हमेशा ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह खामेनेई को अपना राजनीतिक और धार्मिक मार्गदर्शक माना है।
सीरिया में 2011 में शुरू हुए गृह युद्ध के दौरान, नसरुल्लाह ने खुले तौर पर सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद का समर्थन किया और हिज़बुल्लाह के लड़ाके वहां की सेना के साथ लड़ने भेजे। इसने नसरुल्लाह और हिज़बुल्लाह को एक और विवादित भूमिका में ला खड़ा किया, लेकिन उन्होंने इसे “इस्लामी प्रतिरोध” के हिस्से के रूप में उचित ठहराया।
आलोचना और विवाद
हसन नसरुल्लाह की भूमिका को लेकर हमेशा से ही विवाद रहा है। उनके समर्थक उन्हें एक प्रतिरोधक नेता के रूप में देखते हैं, जो इजरायल और पश्चिमी देशों के खिलाफ लड़ रहे हैं। लेकिन उनके आलोचक उन्हें लेबनान के हितों को ईरान और सीरिया के लिए बलिदान करने वाले नेता के रूप में देखते हैं। खासकर लेबनान में कई लोग हिज़बुल्लाह की सैन्य कार्रवाइयों को देश के लिए खतरा मानते हैं।
निष्कर्ष
हसन नसरुल्लाह अब भी जीवित हैं और हिज़बुल्लाह का नेतृत्व कर रहे हैं। उनकी मौत की खबरें सिर्फ अफवाहें हैं, और वे अभी भी मध्य पूर्व की राजनीति और संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके नेतृत्व में हिज़बुल्लाह ने लेबनान और पूरे क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत की है, और वे आने वाले समय में भी एक प्रभावशाली शख्सियत बने रहेंगे।