हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलिह की कहानी History of Khwaja Garib Nawaaz Chishti Ajmeri
हिंदुस्तान के राजा, हमारे ख्वाजा, हजरत सैय्यद ख्वाजा मोईनुद्दीन चिशती संजरी अजमेरी रहमतुल्लाहि अलैह,जो सोफी ए वक्त सैय्यद ख्वाजा ग्यासुद्दीन रहमतुल्लाह आलिह के घर में 530 हिजरी को सीसतान में पैदा हुए, आपकी वालिदा कहती हैं जब से मेरे बतन (कोख)में आए हमारे घर में रहमत की बारिश होने लगी , और खुशहाली बढ़ने लगी
आप का बच्पन खुशहाली और नेकबख्ती के साथ गुजरा है बच्पन से विलायत के आसार आप के माथे पर जाहिर थे| और आपकी शुरुआती शिक्षा 7 साल तक खुरासान में पिता के निगरानी में हुई|
फिर संजर की मशहूर दर्सगाह में आला शिक्षा जैसे तफसीर, हदीस इत्यादि हासिल किए| और 15 साल की उम्र में पिता का साया सर से उठ गया,पिता का मजार मुकद्दस बगदाद शरीफ में है,
ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह आलिह पैदाइशी वली हैं वालिद माजिद से लेकर हजरत अली रदीयल्लाहू अनहू तक खानदान के एक-एक आदमी वली और कुतुब हैं| हजरत ख्वाजा गरीब नवाज वली होने के बावजूद मदरसे में दाखिला लिया,
कुरान, हदीस तफसीर की तालीम हासिल किऐ,और आलीमा फाजिल बनें वालिद माजिद के गुजर जाने के बाद विरासत में ख्वाजा पाक को एक बाग और एक पंचक्की मिली, ख्वाजा गरीब नवाज बाग में काम करते, सिंचाई करते और फलों को फूलों को बाजारों में बेचते,
और इसी तरह से आपकी जिंदगी गुजर रही थी| एक दिन हजरत ख्वाजा गरीब नवाज की नजर एक मज्जूब बुजुर्ग हजरत इब्राहीम कंदोजी पर पड़ी उनको बाग में लाए और छायादार पेड़ के नीचे बिठाए फिर ख्वाजा पाक ने उनको अंगूर के गुच्छे दिए,
कोन है हज़रत सैय्यद ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलिह Who is the Khwaja Garib Nawaz
और बा अदब हजरत इब्राहिम कंदोजी के पास बैठ गए, हजरत इब्राहिम चकदौजी ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह आलिह को अंगूर खाने के बाद अपनी झोली से रोटी का टुकड़ा निकाल कर दांत से चिबा कर दिए तो ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्ला अलैह ने रोटी के टुकड़े को निगल लिया, रोटी का टुकड़ा निगलना था की दिल की दुनिया बदल गई,
इस दुनिया से बेजार हो गए, और आप ने बाग बेच डाला खानदान के लोगों ने बहुत मना किया लेकिन ख्वाजा पाक ने किसी की एक ना सुनी और एक मर्दे हक की तलाश में निकल गए कई खानकाहों मैं गए लेकिन हर जगह से यही जवाब मिला तुम्हारा हिस्सा यहां नहीं है,
फिर एक दिन हजरत ख्वाजा उस्मान हारुनी से मुलाकात हुई, और आपने उनसे बैअत लिया और मुसलसल अपने पीर की खिदमत में 20 साल गुजार दिए हजरत ख्वाजा उस्मान हारुनी कहीं सफर पर जाते तो ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलेह सफर के सारा सामान सर पर उठाकर ले जाते और खिदमत में लगे रहते फिर उनके पीर ओ मुर्शिद उनको हज के पवित्र यात्रा पर ले गए,
ख्वाजा गरीब नवाज का उर्स कब होता है When is the Urs of Khwaja Garib Nawaz
और काबा के करीब उनका हाथ पकड़ कर अल्लाह से दुआ फरमाया या अल्लाह मैंने मोइनुद्दीन को तेरे सुपुर्द किया मेरे पास कितना था मैंने दीया गैब से आवाज आई, मैंने मोइनुद्दीन को कुबूल कर लिया| हजरत ख्वाजा उस्मान हारुनी यह सुनकर बहुत खुश हुए
और अल्लाह के लिए शुकराना के तौर पर सजदा किया फिर वहां से मदीना शरीफ गए पीर उस्मान हारुनी ने ख्वाजा गरीब नवाज से कहा सलाम करो ख्वाजा पाक ने सलाम किया तो रोजा रसूल से आवाज आई वालेकुम अस्सलाम जंगलों और पहाड़ों के सरदार जब यह आवाज आई पीरो मुर्शीद बहुत खुश हुए और फरमाया मोइनुद्दीन अब तुम्हारा काम मुकम्मल हो चुका है|
ख्वाजा गरीब नवाज पीर ओ मुर्शिद से रुखसत हुए और अल्लाह वालों की जियारत की गर्ज से सफर किया और सफर करते करते कई मूल्कों और शहरों से होते हुए फिर दूसरी मर्तबा 583 हिजरी को मक्का शरीफ पहुंचे खाना काबा की जियारत की, और तवाफ किए और गैब से यह आवाज आई, हम तुझसे खूश हैं
सीसतान से अजमेर तक का सफ़र Sistan to Ajmer journey
हमने तुझे बख्श दिया जो मांगना चाहे मांग अता किया जाएगा ख्वाजा पाक ने अर्ज़ किया इससे बड़ी नेक बख्ती क्या हो सकती है कि तूने मुझे कुबूल कर लिया इसके बाद कोई आरजू है तो यह के मेरे सिलसिले के चाहने वालों को बख्श दे गैब से आवाज आई तू हमारा खास बंदा है जो तेरे मुरीद होंगे और क्यामत तक जो मुरीद होंगे उन सबको बख्श दूंगा|
मदिना का सफर : कुछ दिन मक्का में रहे फिर मदीना शरीफ पहुंचे और रोजा ए रसूल पर ही हाजिर रहते जियारत करते एक वक्त वह आया कि ख्वाजा पाक पर गुनुदगी तारी हुई और नबी करीम की जियारत हुई और नबी करीम अलेहीस्सलाम ख्वाजा गरीब नवाज़ को बशारत अता की,
एै मोइनुद्दीन तुम मेरे दिन के मोईन हो तुमको हिंदुस्तान की विलायत अता की गई| हिंदुस्तान में कुफ्र और शिर्क की जुल्मत फैली हुई है, तुम अजमेर जाओ तुम्हारे वजूद की बरकत से कुफ्र और शिर्क की बादल का अंधेरा दूर होगा, और इस्लाम की सुबह का उजाला फैलेगा|
नबी करीम ने मदीना शरीफ से अजमेर के तमाम रास्ता अजमेर का तमाम शहर किला और पहाड़ दिखा दिया फिर एक जन्नती अनार देकर इरशाद फरमाया ए मोइनुद्दीन हम तुमको अल्लाह के सुपुर्द करते हैं और रुखसत फरमाया
ख्वाजा पाक ख्वाब से बेदार होकर 40 वलियों के साथ हिंदुस्तान के लिए सफर फरमाया, सफर करते-करते लाहौर पहुंचे लाहौर से दिल्ली, और दिल्ली से अजमेर शरीफ पहुंचे, बीच रास्ते में बड़े-बड़े वलियों से मुलाकात हुई सबसे से फेैज भी हासिल किए जैसे गौसे पाक रजि अल्लाहअन्ह दाता गंज बख्श हुज्विरी रहमतुल्लाह आले इत्यादि और इस सफर में बहुत सारे वाक्यात भी हुए
History of dargah Ajmer Sharif History of dargah Khaja Garib Nawaz
अजमेर शरीफ पहुंचने के बाद पंडितों और राजाओं से इस्लाम और कुफ्र की जंग शुरू हो गई, ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह पर पानी लेने से रोक लगा दिया| गया ख्वाजा पाक ने अना सागर के पानी को एक छोटे से प्याले में समेट लिया
और उसके अलावा बहुत सारे करामात दिखाएं फिर लोगों में चर्चा हो हुई लोग धीरे-धीरे इस्लाम की तरफ आते गए, और इस्लाम कुबूल करते गए और मुसलमानों की एक तादाद हो गई फिर ख्वाजा पाक गरीब नवाज 6, रजब, 627 हिजरी को अल्लाह को प्यारे हो गए खाजा गरीब नवाज़ का उर्स 21 जमादिल औवाल से शुरू होता है और 23 – 24 तक चलता है